भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
निचुड़ा-निचुड़ा / गगन गिल
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:12, 22 फ़रवरी 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गगन गिल |संग्रह=थपक थपक दिल थपक थपक / गगन गिल }} निचुड़ा- ...)
निचुड़ा- निचुड़ा
दिल था
री माँ!
मैला- मैला
डर था
री माँ!
माथा टकता
काग था
री माँ
नीला हो गया
साँस था
री माँ!
- सूंघा सोती को
- नाग ने
- री माँ!
- सूंघा सोती को
- ले गया
- वो मेरा श्वास था
- री माँ
- ले गया
- अटक गया
- मेरा प्राण था
- री माँ!
- अटक गया
जलता- जलता
जहर था
री माँ!
ऐंठ मुड़ी
मेरी आँत थी
री माँ!
जड़ उखड़ गया
मेरा मन था
री माँ!
कुचला गया
जो एक साँप था
री माँ!