भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कालेमेग्दान / अज्ञेय

Kavita Kosh से
Sumitkumar kataria (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 12:50, 24 फ़रवरी 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |संग्रह=कितनी नावों में कितनी बार / अज्ञेय }} इध...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इधर
परकोटे और भीतरी दीवारों के बीच
लम्बी खाई में
ढंग से सँवरे हुए
पिछले महायुद्ध के हथियारों के ढूह:
रूण्डे टैंक, टुण्डी तोपें, नकचिपटे गोला-फेंक--
सब की पपोटे-रहित अन्धी आँखें
ताक रहीं आकाश।

उधर
परकोटे और दीवार के बीच टीले पर
बेढंगे झंखाड़ों से अधढँके
मठ और गिरजाघर के खंडहर
चौकाठ-रहित खिड़कियों से उड़ता अंधियार
मनुष्यों को मानो खोजता हो धरती पर...

ईश्वर रे, मेर बेचारे,
तेरे कौन रहे अधिक हत्यारे?

बेओग्राद, युगोस्लाविया]


कालेमेग्दान: सावा और दोगउ (डैन्यूब) के संगम पर प्राचान दुर्ग, जिस के भीतर अब अस्त्र-संग्रहालय भी है।