भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गीत / रामधारी सिंह 'काव्यतीर्थ'
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:41, 11 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामधारी सिंह 'काव्यतीर्थ' |अनुवा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
गुरूवर हमरा सें नेहिया लगैभौ कहिया
हो लगैभौ कहिया ।
भक्त प्रह्लाद सनी केॅ तोंय बचैल्हौ
विदुरानी कन छिलका खैल्हौ
जूठोॅ बेरोॅ के भोग लगैल्हौ
हमरा दीन पर नजरिया फेरभौ कहिया ।
पापी में नामी पापी छी
अवगुणोॅ सें भरलोॅ भी छी
गियान-धियान नैं जानै हम छी
भक्ति में भरमैलोॅ भी छी
अरे अंधरा भक्तोॅ के सुधि लेभौ कहिया ।
जनम-जनम सें भटकत रहलौं
कहियो मौका नहिंये पैलौं
यहो जनम केॅ सफल करी लौं
गुरु-चरण में जाय केॅ गिरी लौं
हमरोॅ भव के बंधन काटवौ कहिया ।