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चाँद का गीत / प्रदीपशुक्ल

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दिन में तुम
ग़ायब रहते हो
और रात में मैं सो जाऊँ
आओ चाँद तुम्हारे ऊपर
गीत लिखा है, तुम्हे सुनाऊँ

जब छोटा था
दादी अम्मा
रोज़ रात में तुम्हे बुलातीं
मैं तकता था राह तुम्हारी
दादी खुद थक कर सो जातीं

इन्तज़ार करता था
तुम जो
आ जाओ तो खीर खिलाऊँ

अब रातों में
मैं सो जाऊँ
अन्दर दस परदों के पीछे
बरसों पहले गाँव गया, तब
सोया था अम्बर के नीचे

गूगल में
जब तुमको देखूँ
देख-देख कर मैं ललचाऊँ

पेन्सिल, क़लम,
क़िताबें, कॉपी
बस इनमे उलझा रहता हूँ
होम वर्क या इम्तेहान के
झूले में झूला करता हूँ

चन्दा, तारे,
परियाँ सब मैं
भूल गया हूँ, सच बतलाऊँ.