भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आईना / भूपेन हजारिका

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:04, 10 अप्रैल 2008 का अवतरण (New page: चाह की ऊंचाई पर मन भी कैसा है कैसा है आईना पूरी तरह कोई मन को ही बना देत...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


चाह की ऊंचाई पर

मन भी कैसा है

कैसा है आईना

पूरी तरह कोई

मन को ही बना देता है आईना

आईना को सौंपोगे कुछ

न इंकार करेगा न स्वीकार।

आईना से मांगोगे कुछ

लेगा नहीं कुछ, न ही देगा

फेंकेगा नहीं कुछ

कैसा है आईना

मन कैसा है

चाह की ऊंचाई पर ...