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मर्यादा / चिराग़ जैन
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Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:06, 2 अक्टूबर 2016 का अवतरण (चिराग जैन की कविता मर्यादा जोड़ी)
मैंने एक गोला बनाया
और फिर
उसे चार हिस्सों में बाँट दिया
तभी किसी ने कहा-
”इन चारों हिस्सों में
अलग-अलग रंग भरो”
…तब मुझे अहसास हुआ
कि नए रंग का
अपनी मर्यादा में रहना
तभी संभव है
जब पुराना रंग
अपनी सीमाओं में
पूरी तरह जम जाए!