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नजर / सन्तोष थेबे

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थाहा छैन
आँखाहरुको जात्रामा
तिमी आपूmलाई कति सिँगारेर
तिमी आपूmलाई कति सम्पादन गरेर
आँखाहरुको टहरोमा
कतिबेला
कतिसम्म छेकिएकी हुन्छ्यौँ
कतिबेला
कतिसम्म देखिएकी हुन्छ्यौँ
थाहा छैन
तर
देखाएको कुराबाट नजर भाग्दोरहेछ
लुकाएको कुरामा नजर लाग्दोरहेछ ।