भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रतिरोध / डी. एम. मिश्र

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:54, 1 जनवरी 2017 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दहशत का बाज़ार गर्म है
पूरी दुनिया में
इधर से उधर तक फैला है
मज़े की बात यह है
जो असलहों का व्यापारी है
वह शान्ति की अपील करता है
जो जितना बड़ा दहशतगर्द है
वह उतना अधिक भयग्रस्त है

मैं निहत्था और अकेला हूँ
कोई डर नहीं
पर, भरोसा है
मधुमक्खियाँ निश्चिंत होकर
छतों से बाहर आती हैं
कोई डर नहीं
पर, हिम्मत है
लाजवन्ती अनचाहे स्पर्श से पूर्व
मुरझा जाती है
कोई डर नहीं
पर, सामर्थ्य है

प्रतिरोध इन्कार करने से ही नहीं होता
प्रतिरोध बेकार करने से भी होता है

ताप कहीं से भी मिल सकता है
पर, आँच सदैव भीतर से आती है
जैसे पहली बारिश में
ज़मीन से
बर्फ से
शब्द की धार से