भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विवश पशु / शैलेन्द्र चौहान

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:28, 7 मई 2008 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चरागाह सूखा है

निश्चिंत हैं हाकिम-हुक्काम


नियति मान

चुप हैं चरवाहे


मेघ नहीं घिरे

बरखा आई, गई


पशु विवश हैं

मुँह मारने को

किसी की खड़ी फसल में


हँस रहे हैं

आकाश में इन्द्र देव