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कुंभ-4 / विजय कुमार
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क्या यह मेरी अंतिम मृत्यु है
क्या इसके बाद मेरा जीवन अमर हो जाएगा
मैंने चीख़ कर पूछा साधु से
साधु, जो एक टांग पर खड़ा था बरह बरस से
उसके गुप्तांग पर चांदी का ढाल
लोहे की चेन से बंधा हुआ जिसमें उसका तूफ़ान
- बारह बरस से
वह मुस्कराया, वह डालडा के डिब्बे से
शहद निकालकर खाता हुआ
वह बड़ी-बड़ी जटाओं वाला रीछ ।