भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैदान / शैल चतुर्वेदी

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:16, 25 मई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शैल चतुर्वेदी |संग्रह=चल गई / शैल चतुर्वेदी }} एक मक्खी<br...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक मक्खी
और उसकी बच्ची
एक गंजे का सिर
पार कर रही थी
कही पकडी न जाएँ
इसलिए डर रही थी।
माँ बोली - "सुन बेटी
बदल गया ज़माना
जब ज़िन्दा थे तेरे नाना
तब मै यही से निकली थी
यह चौडा रस्ता था
सँकरी गली थी
दोनो ओर जंगल था बियाबान
अब हो गया है मैदान।