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चाँदनी चुप-चाप / अज्ञेय
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चाँदनी चुप-चाप सारी रात
सूने आँगन में
- जाल रचती रही।
- जाल रचती रही।
मेरी रूपहीन अभिलाषा
अधूरेपन की मद्धिम
- आँच पर तँचती रही।
- आँच पर तँचती रही।
व्यथा मेरी अनकही
आनन्द की सम्भावना के
- मनश्चित्रों से परचती रही।
- मनश्चित्रों से परचती रही।
मैं दम साधे रहा,
मन में अलक्षित
- आँधी मचती रही :
- आँधी मचती रही :
प्रातः बस इतना कि मेरी बात
सारी रात
उघड़कर वासना का
- रूप लेने से बचती रही।