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मुलाक़ात / वीरा
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रात भर के बाद
दरवाज़े खोले
तो
रोशनी के साथ
धूप भी आई थी
चुपके से
जब तक मैंने
उसके लिए बिस्तर बिछाया
वह सीढ़ियाँ उतर रही थी।
(रचनाकाल : 1983)