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पीलो / विक्रम सुब्बा

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युगौँदेखि उत्तानो आँ…खोलेर बसेको
कान्तिपुर
कहिल्यै नअघाउँने खञ्चुवा मुख
जसको अनुहारबाट सर्वत्र पीपैपीप खस्या’छ
किनभने पीलोझैँ पाकेर निधारमै
ढ्याक्क सिंहदरबार बस्या’छ ।