भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भोली आशंका / वीरा

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:02, 5 जून 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वीरा |संग्रह=उतना ही हरा भरा / वीरा }} मनीप्लांट के सूखत...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मनीप्लांट के सूखते पत्तों की

पीली आहट

मेरी माँ के चेहरे पर

आशंका की झुर्रियाँ बढ़ा देती है


मेरी माँ भोली है

वह नहीं जानती कि

पीले पड़ते पत्तों का ताल्लुक

धूप के आतंक से नहीं

उस पानी से है जिसका


बहाव

दूसरे रास्ते पर

मोड़ दिया जाता है