भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कोयलड़ी / राजेन्द्रसिंह चारण
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:54, 11 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजेन्द्रसिंह चारण |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कागलिया री
कांव-कांव सूं
कांपती कोयलड़ी
ईण्डा फूटण रै डर सूं
कूं-कूं करै
अर लोग सोचै
कित्तो मीठौ गावै है।