भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अप्रकाशित कविता / असद ज़ैदी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:43, 6 जून 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=असद ज़ैदी }} एक कविता जो पहले ही से ख़राब थी होती जा रही ...)
एक कविता जो पहले ही से ख़राब थी
होती जा रही है अब और ख़राब
कोई इन्सानी कोशिश उसे सुधार नहीं सकती
मेहनत से और बिगाड़ होता है पैदा
वह संगीन से संगीनतर होती जाती
एक स्थायी दुर्घटना है
सारी रचनाओं को उसकी बगल से
लम्बा चक्कर काटकर गुज़रना पड़ता है
मैं क्या करूँ उस शिथिल
सीसे-सी भारी काया को
जिसके आगे प्रकाशित कविताएँ महज तितलियाँ है और
सारी समालोचना राख
मनुष्यों में वह सिर्फ़ मुझे पहचानती है
और मैं भी मनुष्य जब तक हूँ तब तक हूँ।