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केतारी किसान / अशोक शुभदर्शी

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केतारी लहलहाय छै
खेतोॅ में
मोटोॅ-मोटोॅ
लंबा-लंबा
बाँसोॅ नांकि
नीचोॅ सें ऊपरोॅ तांय पोरेपोर
रसोॅ सें
भरलोॅ छै ई केतारी
भविश्य में अपनोॅ वर्Ÿामान डूबाय केॅ
आपनोॅ मिठास
भरी दै लेॅ चाहै छै केतारी
केतारी केॅ कोनी-कोनी तांय
कोय केकरोॅ विरोधी नै छै
सभ्भैं मिली केॅ अरपित करै लेॅ चाहै छै
अपनोॅ जीवन
वसंत केॅ
वसंत के अगुवानी में
खाड़ोॅ होय छै
पूरा उल्लास सें
भरलोॅ होय छै ई केतारी।