भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चाल / दुष्यन्त जोशी

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:24, 29 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दुष्यन्त जोशी |अनुवादक= |संग्रह=अ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भलांईं
काछुवै दांईं चाल
पण खड़्यौ ना रह अबोलौ

खड़्यौ पाणी भी
लाग जावैै बांसण

माणस टुरतौ-फिरतौ
अर पाणी बैं'वतौ
करै बधेपौ

जग सारू
अर खुद सारू।