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नैतिकता / हरिभक्त कटुवाल

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कति भन्छु म मेरै आँखाले मात्र संसार नहेरुँ
नछेकूँ कसैको बाटो सामु तेर्सिएर
तर अनायास तेर्सिन पुग्छु कतिको बीच बाटामा
जब देख्छु मन्दिरमा चढ्ने फूल झर्न खोज्छ रछ्यानमा ।