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गली / मोहन राणा
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हम सुनेंगे तुम्हारे स्वरों को चुपचाप
रिमझिम में भीगते
धोते अपने अंतर को उनकी धारा में,
बारिश चली जाएगी
अनजाने अंतरालों में
समेटते स्मृतियों की कतरनों में
जाने कब से दम साधे बोल पड़ती अनुगूँज दोपहर की
तुम्हें सुनते सुनते
14.4.08