भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सुवासित रश्मियाँ / दिनेश श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:18, 13 अक्टूबर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनेश श्रीवास्तव |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
ये सुवासित रश्मियाँ
किस रोम से जागीं?
अब न जाने कब तलक
मन लहलहाएगा.
कुछ सुवापंखी सपन
उर-गगन पर झूमे,
अब खिलेंगे शीघ्र ही
मृदु-गीत मधुमासी.
एक भूली धुन ने खोली
याद की झोली.
रुक न पाएगी कहीं
अब हृदय की झोली.
आज फिर महकीं
नयन में चम्पई साँसें.
अब निगाहें खोज लगीं
नेह का उद्गम.
(प्रकाशित, विश्वामित्र, कलकत्ता, १९७९)