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गीत / ब्रजमोहन

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गीत जैसे हरे-भरे खेत में किसान रे
गीत जैसे गूँगी धरती की है ज़ुबान रे...

गीत जैसे चाक को घुमाए है कुम्हार रे
गीत जैसे आँखों में हो ज़िन्दगी का प्यार रे
ज़िन्दगी सफ़र, गीत पाँव की है जाम रे...

गीत जैसे मन में बसा हो कोई सपना
गीत जैसे घर हो किसी का कोई अपना
गीत जैसे हँसता हो कोई इनसान रे...

गीत जैसे दुख को चुराए कोई चोर रे
गीत जैसे माँ की ममता का नहीं छोर रे
माथे से पसीने की उड़ाए है थकान रे...

गीत जैसे बच्चा माँगे दुनिया की ख़ुशियाँ
गीत जैसे काटे नहीं कटती हों रतियाँ
गीत जैसे बेटी हुई घर में जवान रे...

गीत जैसे दिया जल जाए ठीक रात में
गीत जैसे आग लग जाए किसी बात में
गीत जैसे गरजे है देखो आसमान रे...