भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मुझे याद दिलाओ / रुस्तम
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:51, 26 नवम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रुस्तम |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poe...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मुझे याद दिलाओ
कि कुछ
याद रखने लायक था और अब भूल गया है।
यही याद है बस कि समय क्रूर था : स्मृति ने मुझे धोखा
दिया है।
वहाँ
ज़रूर कुछ सुन्दर होगा,
सुन्दर
रहा होगा,
जिसे मैं भूल गया हूँ।
मैं
मानने से डरता हूँ कि वो सब कुछ जो मुझसे छूट गया है
सब
त्याज्य था।