भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सच-झूठ / कुमार मुकुल

Kavita Kosh से
Kumar mukul (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:35, 30 नवम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार मुकुल |अनुवादक= |संग्रह=समु...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जब तुझे लगे
कि दुनिया में सत्‍य
सर्वत्र हार रहा है

समझो
तेरे भीतर का झूठ
तुझको ही
कहीं मार रहा है।