भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

राजनीतिज्ञ / कुमार मुकुल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:55, 26 जून 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार मुकुल |संग्रह=ग्यारह सितम्बर और अन्य कविताएँ / क...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

विचलन तो दूर की बात है

डर की एक लौ भी नहीं छूती उन्हें

उन्होंने पढ़ रखी है गीता

वे मार सकते हैं स्वजनों को

वे जानते हैं तुम्हें

कि तुम लाचार हो कितने कि विनम्र हो

जो अक्सर हास्य

रीझे तो व्यंग्य कर सकते हो।