भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बेलगाम स्त्री को विदाई / लोरना गूडिसन / यादवेन्द्र

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:39, 3 जनवरी 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लोरना गूडिसन |अनुवादक=यादवेन्द्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैंने जान-बूझकर दूरी बनाए रखी
उस बेलगाम स्त्री और ख़ुद के बीच
क्योंकि उस पर ठप्पा लगा हुआ था चाल-चलन ठीक न होने का

हरदम वह लालच देकर बुलाती
आकर साथ शराब के घूँट लेने को
रक्तिम शराब और वह भी मिट्टी के भाण्ड में
फिर दुबले-पतले अश्वेत मर्दों के झूठे वायदों और झाँसों के आगे
घुटने टेक समर्पण कर देने को

ऐसा भी होता है कई बार
जब मैं रात में जल्दी बन्द करने लगती हूँ घर
और इतराने लगती हूँ अपनी शुचिता पर
कि एक और दिन जी लिया मैंने बगैर मुँह लटकाए, उदास हुए
तभी वह दिख जाती है अड़हुल के पीछे खड़ी हुई
फूलों के लाल रंग को मात करते लाल परिधान में
बिल्ली की आँखों सरीखी अँगूठी में बँधी चाभियाँ अल्हड़ता से घुमाती
और मुझे ललचाती आवाज़ देती
कि घर से बाहर निकलो
आओ, चलते हैं कहीं मस्ती करने…

अँग्रेज़ी से अनुवाद : यादवेन्द्र