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टोक-डण्डा / कन्हैयालाल मत्त

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सभी खिलाड़ी हुए इकट्ठे,
चेता वन-खण्डा !
चला टोक डण्डा !

शाम अभी कुछ दूर पड़ी है,
मगर परस्पर पैज पड़ी है,
कप्तानी का भार सम्हाले,
खड़े श्याम पण्डा !
चला टोक डण्डा !

चढ़े पेड़ पर सभी खिलाड़ी,
मगर न डण्डे वाला आड़ी,
सीटी बजी, हिला कुछ डण्डा,
फड़का भुजदण्डा !
चला टोक डण्डा !

एक पैर के तले घुमाकर,
दूर फेंक मारा टुलका कर,
रुमण्टी यदि हुई कहीं, तो —
फूट गया भण्डा !
चला टोक डण्डा !

शेष खिलाड़ी कूदे नीचे,
दौड़े, झपटे मुट्ठी भींचे,
डण्डा लिए जब एक लौटा,
भागा मुस्टण्डा !
चला टोक डण्डा !

नए यार का बना मुरण्डा,
फिर-फिर चला वही हथकण्डा,
होने लगा झुरपुटा गहरा,
खेल हुआ ठण्डा !
चला टोक डण्डा !