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आख़िरी ख़त / विशाखा विधु

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इक दिन
लिखूंगी मैं
मेरा आखिरी ख़त
जिसमें होगीं
कुछ माफ़ी
जो दे ना सकूंगी
मैं जीते जी
और हाँ
होगी इक इच्छा
कि..
तुम थाम लो आकर
मेरी ठंडी हथेली
और थामे ही रखो
उस लम्हे तक
जब तक मिट न जाए
मेरा ये मलाल
कि ..
तुमने भी
कह दिया था
कि छोड़ दिया है हाथ मेरा..
दे जाऊँगी वो सारी दुआएं
विरसे में
जो सिर्फ और सिर्फ तुम्हें लगेंगी...।