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आसमानों को / कुमार मुकुल

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आसमानों को

फुनगियों पर उठाए

कैसे उन्मुक्त हो रहे है वृक्ष

आएँ

बटाएँ इनका भार

और मुक्त होकर हँसें

हँसें

ठहाके लगाएँ

हँसें

कि आसमान

कुछ और ऊपर उठ जाए।