होलरी-होलरी / कुमार वीरेन्द्र
होलरी-होलरी, हे होलरीsss
हे होलरी, होलरी-होलरी
हे होलरी, खोरी-खोरी, ओरी-ओरी धूरिया उड़ान रे
साँझ-बिहान, चढ़ल जवनिया की आपन-आपन टोली, उछलत-कूदत बानर हमजोली
बाँधे रेरी, रेरी में बोली आपन, आपन टोनबाज़ी, भीत-भीत उखाड़ रहे, नोंच रहे, सूखे
अधसूखे गोइंठे, भर रहे बोरा-बोरी, झोरा-झोरी भर गए तो ढेर चिपरी के
लिए, खोल दिए आपन-आपन कुर्ते-गंजी, चूकें-रुकें ना, कवनो
मौक़ा, मौक़ा के एको झोंका, हे होलरी
होलरी-होलरी, हे होलरी
हेsss, होलरीsss, होलरी-होलरीsss
बाँध रहे गमछी में झपट-छउँक
एने लपक-ओने लपक, तेलहन की झूँसी, अरहर की झाँखी
तीसी की तिलाठी, पाँजा-पाँजा उठा रहे कि मची रेरी, 'धर तs रे नतियन को, मूँड़ी अइठवनन को धर तs'
घर-घर की बुढ़िया निकलीं लिए लबदा, निकलीं बहरी मार-भगाने को, पर छौने-छोरे बड़े फुर्तीले, फुर्र-फुर्र
उड़ गए, इस-उस खोरी, बुढ़िया भगाएँ, कितना भगाएँ, ऊ भी कहँवा तक, जब आपन पोतवा
भी करे, 'हे होलरी, होलरी-होलरी, होलरीsss', गावे दुआरे-दुआरे, दुआरी-दुआरी
'हे समतs गोसाईं दसगो गोइंठा दs, तोहार बाल-बाचा जिए दसगो
गोइंठा दs', और ऊ देतीं भी तो दु-चार ही, पर
इतने से कइसे जरेगी समत
कितनी देर तक छुएगी लपट सरग
होगा कइसे अँजोर गाँव-भर
खेत-बधार छोरे-छोर, दुलकी चाल से भगा रहीं बुढ़िया, देख-देख
खिड़की से लगा रहीं ठहाके, नइकी-पुुुरनकी पतोहुएँ, दूर भगा लौट रहीं बुढ़िया, तो उनके बुढ़ऊ खीस में
घोल रहे और खीस, पछुआ खोंस मचाने लगे शोर, 'हे होलरीsss, होलरी-होलरी, होलरीsss', पिनपिना
गईं बुढ़िया कि, 'हई देखो रे, हई बुढ़वन को, जोम में लौंडा बन रहे', दौड़ा दिया उन्हें भी लिए
लबदा कि, 'आओ, अउर कउँचाओगे, आओ', अइसे में उनके मरद भी, लकड़ी
की चइली मिली, चाहे टूटल-फाटल चौखट-खटिया, उठा दे आए
छोकड़ों को गाते कि, 'हे समतs गोसाईं दुगो बुद्धि
दs, हमार बुढ़िअन के दुगो बुद्धि दs'
फिर भीरी आ, भरने लगे अँकवार
और रात जैसे ही
हुआ होलिका दहन, घर-घर से निकले छोकड़े
सुबेरे से, जो किरासन तेल, पी रही थी होलरी, उसे लिए, और होलिका से लहका
मचाते शोर, होड़ में होड़, भाँजते चले गाँव-जवार में चहुँचोर, चले 'होलरी-होलरी'
की रेरी बाँधे तो कोई दुआर-बथान पर कि छप्परी-आँगन में न फेंकेें
कोई मड़ई-झोंपड़ी बाहर जोड़े हाथ कि लहक गईं तो
बेटी-बहिन उघार, कोई खेत-खरिहान
में, कि कहीं लहका न दें
गेहूँ-बूँट के बोझों की टाल
कि राख हुई
चइती, कैसे कटेगा साल, कोई
जब तक नाहीं लौटत, आपन छोकड़ों की देखत राह कि ई
गाँव बड़का घाती, इहाँ दोस्ती सोवत, दुश्मनी जागत बारहों
मास, जागत बारहों मास तो जैसे-जैसे बीत रही
रात, छेदे गूँजत शोर आर-पार
हे होलरी, होलरी
होलरीsss, हे होलरी, होलरीss !