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ओस है आंख का पानी शायद / रंजना वर्मा

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ओस है आँख का पानी शायद
फूल लिखता है कहानी शायद

गुनगुनाने लगे हैं भँवरे भी
धुन फ़िज़ाओं को सुनानी शायद

कोई बनवा के गया ताजमहल
इश्क़ की है ये निशानी शायद

ज्वार उठने लगा समन्दर में
आई नदियों पर जवानी शायद

आसमाँ पर जमीं तलाश रहा
है नयी दुनियाँ बसानी शायद

है हवा में महक समायी हुई
खिल गयी रात की रानी शायद

रो रहा जार-जार है कोई
पड़ गयी याद भुलानी शायद