भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ब्वारी / कन्हैयालाल डंडरियाल

Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:43, 15 मार्च 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कन्हैयालाल डंडरियाल }} {{KKCatGadhwaliRachna}} <poe...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भाई जी ने मैखुणि कि ब्वारी क्या खुज्याई है
कपाळी हुंच्याई है मेरी थुंथरी थिचाई है
अफ्फु को त भात , मैकू झंगोरा पकाती है
 मेरा बांठा बाडिम वा दबळी बि नही चलाती है
मैंने माँगा मांड उसने आंखी भ्वंराई हैं
गालुन्द मेरा बंसतुळी से परछोणी खल्याई हैं
की मैंने कम्पलेंट भाई जी के पास में
ही मेरी पेशी झट बौऊ के इजलास में
भौत गन्ग्जाये हम अपणी सफाई में
 हार गए केस कोई मिली नहीं गवाही है
 चचराने लगी वह मैंने खा शट अप
 बिलकी चट शांक्युं फर ह्वेगे मैकू टपटप
 खैंची मैंने भिटुलि , उसने चुप्पा झम्मडाई है
 पड़ी गे ऐड़ाट मेरो , वह भि डगड्याइ है
 चढी तब नडाक मुझे , बौंळी चट बिटाई है
 करता हूं मै सळपट तैने क्या चिताई है
 बर्बराई चट , वा , उसने मुछ्याळी उठाई है
 भागे लुकणो वैबरी तिखन्डी खुज्याई है।