गैरसैंण / दिनेश ध्यानी
कबि ये कूण, कबि वे कूण
कवि यीं धार, कबि वीं धार
कबि ये सैंण, कबि वै सैंण
हलकणां छन नेता जी
पर एक दौं झपगै कि
गैरसैंण किलै नि, बौडणां छन नेता जी?
जैन बि कैरि सदन्नि
अपणां मर्जि कैरि
निरजी राज हुयों कै सरम न डैर
भैर वळा लुटणां छन
भितर वळों से हुयों बैर।
सत्रा सालम बथाव धौं
कैं सरकारन पाड़ै विकासौ बात कैरि?
जै बि मौका मीलि चुनौ म
वो गैरसैंण-गैरसैंण बोलिकि
हमुम बिटि वोट ल्हेणां छन
अर हमरी आंख्यों म गैरसैंणा सुपिन्या कुच्येकि
मौज कनां छन।
सत्रा साल बिटि न त पाडै़ विकास ह्वै
न राजधानी गैरसैंण गै
न पलायन रूकु अर
न रोटि-रोजगारौ जुगाड़ ह्वै।
नेता छन गलादार
तौं नी छ गैरसैंण से क्वी सरोकार
इनां सूणां!
शहीदों त्याग याद कारा
माॅं-बैण्यों संघर्ष आंख्यों म भ्वारा
किलै छां यों नेतों का सारा परैं
सच्चा जि छावा त
ऐक-ऐक ढुंगु गैरसैंणा नौ को
सब्बि उठावा
अर जनु हमुन राज्य ल्हे तन्नि
अफ्वी गैरसैंण थैं राजधानी बणावा।
अफ्वी गैरसैंण थैं राजधानी बणावा।