भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
खुदगर्जियों की अब नहीं कोई मिसाल है / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:47, 30 मार्च 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=प्य...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
खुदगर्जियों की आज न कोई मिसाल है
इस वक्त आप को न किसी का खयाल है
है मुफ़लिसी ने कर दिया सब को करीब यूँ
सब ये समझ रहे हैं कि जीना कमाल है
तौबा हैं लोग करने लगे अब जो ऐब से
ये खौफ़ बदी का भी खुदा का जलाल है
नेकी की राह चल के भी पायीं न नेमतें
मुद्दत से आज भी यही उलझा सवाल है
पर्दे का चलन छोड़ हैं बाहर हिजाब से
ये हौसला औरत का तो बस बाक़माल है
हम इंतज़ार करते रहे आप का मगर
आये नहीं हैं आप इसी का मलाल है
दुनियाँ किसी भी एक की खातिर नहीं बनी
ये क़ायनात रब के किये का जलाल है