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प्रेम / दुष्यन्त जोशी
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प्रेम काईं है
थारौ फुटरापौ
कै
म्हारी दीठ
थारौ देखणौ
चालणौ-हांसणौ-बोलणौ
म्हारै हिवड़ै नै
घणौ रिझावै
थारी मूरत
म्हारी आंख्यां में
मखमळी सुपणां सजावै
थारौ
हळकौ सो परस
म्हारै भीतर
झणझणाट करतौ लखावै
स्यात इणी नै
कैवां प्रेम
जिकौ आपरै औळखाण रौ
अरथ दरसावै।