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बिम्ब / दुष्यन्त जोशी
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मन रै माथै
जम्योड़ी है
मैल री परतां
स्यात
इणी कारण
आपां नीं सीख सकां
प्रेम री बातां
पळपळाट करतै
बरतण दांईं हुवै मन
तद ई दीखै
खुद रौ बिम्ब
खुद नै।