भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अभी स्थगित / कुमार सौरभ

Kavita Kosh से
Kumar saurabh (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:04, 11 अप्रैल 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार सौरभ |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <poem> “क...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

“कैसे हो?”
आत्मीय लहजे में कौन पूछता है अब !
कंठारूद्ध सुपरिचित यह स्वर
उस उदास झोपड़ का ही था
घोर अभावों मे भी जिसने
हँसना कभी नहीं छोड़ा था !

जिसके आंगन की मिट्टी पर
लुढ़क लुढ़क कर चलना सीखा
जिसके आश्रय में ही पलकर
कहने को हम बड़े हुए थे!

प्रति उत्तर में बोल न फूटे
हिचक हिचक कर जी भर रोया
छेड़ गया हो जैसे कोई
भीतर की सोयी कोमलता !

आओ साथी कंठ लगा लो
लोकगीत की तान सुना दो !
एकपेरिया पर दौड़ लगा लें
पोखर-पाखी-नहर-निर्जनों से
हम फिर से होड़ लगा लें !

अभी स्थगित कर दें अपने
बड़े-बड़े आयतन के सपने
मिल बैठें सारे लंगोटिये
चिर लंबित सब गप्प लड़ा लें !