भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उयार / बृजेन्द्र कुमार नेगी
Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:37, 24 अप्रैल 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बृजेन्द्र कुमार नेगी |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
घड़यलु धरा
दूध-फूल चढ़ा
धुपणा करीं
उच्यणा गढीं
फिर भी नि प्वाडू
जब फर्क
तब
जागरी व्वाडा व्वन बैठ
बेटा !
तुमल नि चड़ा 'किल्सार'<ref>बलि के लिए बकरा</ref>
इल्ले
देबता ल
नि सुणी पुकार
फिर
कनुखै हुणु छा
'उयार"।
शब्दार्थ
<references/>