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पहचान / स्नेहमयी चौधरी

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वह क्रांति का जामा नहीं पहनेगी

न विद्रोह की आग में ही जलेगी

न किसी को तोड़कर फेंकेगी

न स्वयं को टूटने देगी

फिर वह क्या करेगी?


न वह जलता हुआ अंगार बनेगी,

न बुझती हुई राख

न पक्षी की तरह

उड़ने की कामना करेगी

न शुतुर्मुर्ग की तरह

एक कोने की तलाश

न खड़ी रहेगी, न भागेगी

न संघ्र्षों का आह्वान करेगी

न ठुकराएगी

क्यों कि यह सब वह नहीं कर सकती?

उसे अपनी शक्ति और सीमा

दोनों की पहचान है

वह एक जीवन जिएगी

जो सुबह की तरह ताज़ा होगा

लेकिन उसका समय तो बीत गया

फिर दोपहर के

सूरज की तरह चमकेगी

वह भी तो ढल गया


अच्छा तो ढलते

सूरज के साथ-साथ ढलेगी

शाम होने तक