भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

छिंगुनी / अजित कुमार

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:33, 15 जुलाई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अजित कुमार }} मुट्ठी बांधने की असफल कोशिश करते मरीज़ क...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुट्ठी बांधने की असफल कोशिश

करते मरीज़ की छिंगुनी में

एक बार जब अचानक

ज़रा सी हरकत हुई...


तुम्हारा मुख-कमल खिल उठा

उत्साहित होकर तुम बोलीं-

लौटेगी ज़रूर, उंगलियों की ताक़त फिर लौटेगी।


लेकिन इस विडंबना से नियति की

तुम कहाँ तक लड़ सकती थीं कि

तनिक देर की उस जुंबिश के फिर से

लौटने का इंतज़ार बेहद लंबा होता गया।