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मुक्तक-25 / रंजना वर्मा

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देखा अनुपम प्यार तुम्हारी आँखों में
देखा सब संसार तुम्हारी आँखों में।
माता भाग्य विधाता होती बच्चों की
दिख जाता घर बार तुम्हारी आँखों में।।

कष्ट देने का कोई इरादा न हो
टूट जाये कभी ऐसा वादा न हो।
साथ ऐसा रहे चाँद ज्यों चाँदनी
दर्द जैसे नमक किन्तु ज्यादा न हो।।

है अनोखी बड़ी रीत संसार की
ये डगर है कठिन यार की प्यार की।
मत समझिये इसे पुष्प की सेज है
काट देती जिगर धार तलवार की।

कागज की बनी कश्ती है पार कहाँ जाती
दो बूंद पड़े पानी पल भर में नहा जाती।
यह पार उतारेगी उम्मीद नहीं करना
मल्लाह बिना नैया है डूब सदा जाती।।

रात भर आप की याद आती रही
चश्मे' नम अश्क़ भी है बहाती रही।
जब भी' आहट हुई दिल धड़कने लगा
हिज्र की आग दिल को जलाती रही।।