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मुक्तक-49 / रंजना वर्मा

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बहुत सी हलचलें हैं सोज़ है मेरी कहानी में
कई किस्से छिपे आदर्श के इस की रवानी में।
यहीं पर राम जन्मे थे यहीं थी कैकयी रानी
लिखा इतिहास है यह सन्त ऋषियों की जबानी में।।

बहारें लौट आती हैं चमन में फूल खिलते हैं
निशा जब बीतती चकवा चकोरी रोज़ मिलते हैं।
मगर जब रूठती तकदीर है तो फिर नहीं बनती
उदासी घेर लेती है नयन से अश्रु ढलते हैं।।

कभी जीना हुआ मुश्किल कभी हँस हँस के जीना है
गरल यह जिन्दगानी का सभी को रोज़ पीना है।
न कोई साथ दे तब भी बढ़ा जा राह पर अपनी
हमेशा जिंदगी जीने का यह ढब ही करीना है।।

जमाना है नया सिल पर है अब हल्दी नहीं पिसती
न कजरौटे में उँगली माँ की है काजल कभी घिसती।
बलायें ले कि या नजरें उतारे अब कहाँ फुरसत
इसी से आज माँ की याद भी उतनी नहीं रिसती।।

नीलकंठ है शिव शंकर सा नीला कण्ठ तुम्हारा
जब कोई शुभ अवसर आया सब ने तुम्हें पुकारा।
जन मानस की आस यही शिव के हो तुम अवतारी
विपदा बाधाओं का विष पी बिगड़ा काम सँवारा।।