भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
संबंध / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:46, 17 जुलाई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर |संग्रह=अनुभूत क्षण / महेन्द्र भटनागर...)
विश्वास का जब दुर्ग
ढहता है
आदमी लाचार हो
गहनतम वेदना....
मूक सहता है !
तैयार होता है
निरर्थक ज़िन्दगी
जीने के लिए,
प्रति-दिन
कड़वी घूँट पीने के लिए !
जीवन-शेष दहता है !
विश्वास का जब दुर्ग
ढहता है !
या फिर
आत्म-हंता बन
शून्य में ख़मोश बहता है !
विसर्जित कर अस्तित्व
चुपचाप कहता है
किसी का भी
अरे, विश्वास मत तोड़ो,
विश्वास बंधन है,
विश्वास जीवन है !