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वेदना / महेन्द्र भटनागर
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जीवन
निष्फल जाता
सह लेता,
जब-तब
शोकाकुल स्वर से
कविता कह लेता !
लेकिन
रिसते घावों का
पीड़क अनुभव सहना,
जीवन-भर
तीव्र दहकती भट्ठी में
पल-पल दहना
संहारक है
निर्मम हत्या-कारक है !
यह तो
सारा सागर गँदला है,
जाने
कितने-कितने जन्मों का
बदला है !