भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उपलब्धि / महेन्द्र भटनागर

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:22, 18 जुलाई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर |संग्रह=आहत युग / महेन्द्र भटनागर }} सप...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सपनों के सहारे
एक लम्बी उम्र
हमने
सहज ही काट ली —
बडे सुख से
सहन से
सब्र से !
मन के गगन पर
मुक्त मँडराती व घहराती
गहन बदली अभावों की
उड़ा दी, छाँट दी
हमने
अटल विश्वास के
दृढ़ वेगवाही वातचक्रों से,
दिन के, रैन के
अनगिनत सपनों के भरोसे !

मौन रह अविराम जी ली
यह कठिनतम ज़िन्दगी
हमने
अमन से, चैन से !

सपनो !
महत् आभार,
वृहत् आभार !