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रुसवा किया है तूने महफ़िल में खुद बुला के / ईश्वरदत्त अंजुम
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रुसवा किया है तूने महफ़िल में खुद बुला के
छोड़ेंगे हम भी ऊनी हस्ती को अब मिटा के
कहते थे आएंगे हम बरसात आयेगी जब
बरसात भी गयी है आखिर हमें रुला के
ऐ दिल तुझे ये तेरी खुद्दारियां मुबारक
चलता हूँ हर जगह में दुनिया से सर उठा के
ये सिसक सिसक के जीना कोई ज़िन्दगी नहीं है
तुम तो न जाओ हमसे दामन को यूँ छुड़ा के
कश्ती का अब ख़ुदा ही आकर बने मुहाफ़िज़
बचना है ग़ैर मुमकिन आसार हैं फ़ना के
आती तो होगी तुमको उन मौसमों की यादें
गाते थे गीत हम तुम मिल जुल के जब वफ़ा के
तूफां के बीच अंजुम जिसने मुझे बचाया
मारा उसी ने आखिर साहिल पे मुझको ला के।