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अग्नि-परीक्षा / महेन्द्र भटनागर

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काली भयानक रात,

चारों ओर
झंझावात,
पर, जलता रहेगा —
दीप...
मणिदीप
सद्भाव का,
सहभाव का !
उगती जवानी
देश की
होगी नहीं गुमराह !
उजले देश की
जाग्रत जवानी
लक्ष्य युग का भूल
होगी नहीं गुमराह
तनिक तबाह !

मिटाना है उसे —
जो कर रहा हिंसा,
मिटाना है उसे —
जो धर्म के उन्माद में
फैला रहा नफ़रत,
लगाकर घात
गोली दाग़ता है
राहगीरों पर
बेक़सूरों पर !
मिटाना है उसे —
जिसने बनायी ;
धधकती बारूद-घर
दरगाह !

इन गंदे इरादों से
नये युग की जवानी
तनिक भी
होगी नहीं गुमराह !

चाहे रात काली और हो,
चाहे और भीषण हों
चक्रवात-प्रहार,
पर,
सद्भाव का: सहभाव का
ध्रुव-दीप / मणि-दीप
निष्कम्प जलता रहेगा !
साधु जीवन की
सतत साधक जवानी
आधुनिक,
होगी नहीं गुमराह !

भले ही
वज्रवाही बदलियाँ छाएँ,
भले ही
वेगवाही आँधियाँ आएँ,
सद्भावना का दीप
सम्यक् धारणा का दीप
संशय-रहित हो
अविराम / यथावत्
जलता रहेगा !
एक पल को भी
न टूटेगा
प्रकाश-प्रवाह !
विचलित हो,
नहीं होगी
जवानी देश की
गुमराह !

उभरीं विनाशक शक्तियाँ
जब-जब,
मनुजता ने
दबा कुचला उन्हें
तब-तब !

अमर —
विजय विश्वास !
इतिहास
चश्मदीद गवाह !
जलती जवानी देश की
होगी नहीं गुमराह !

एकता को
तोड़ने की साज़िशें
नाकाम होंगी,
हम रहेंगे
एक राष्ट्र अखंड
शक्ति प्रचंड !

सहन
हरगिज़ नहीं होगा
देश के प्रति
छल-कपट विश्वासघात
गुनाह !
मेरे देश की
विज्ञान-आलोकित जवानी
अंध-कूपों में
कभी होगी नहीं गुमराह !