भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

काश / सवाईसिंह शेखावत

Kavita Kosh से
Kumar mukul (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:05, 17 अक्टूबर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सवाईसिंह शेखावत |संग्रह= }} {{KKCatK avita}} <p...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

{{KKCatK avita}}

​​
एक जोड़ी जूते
कोने की दीवार से सटा कर रखे हुए
अगल-बगल गर​​दन झुकाए बैठी ख़ामोशी
खिड़की से झाँकता बुझा नीला आकाश
धूप से भरा किन्तु कुछ वीरान-सा दिन
घर के अहाते में पसरी परित्यक्त उपस्थिति
गलियारे तक चली आई मुखर अनुपस्थिति
काश, दृश्य में एक आदमी भी होता
इस होेने को दूर तक ले जाता हुआ!