भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्व-रुचि / महेन्द्र भटनागर

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:42, 6 अगस्त 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर |संग्रह=संकल्प / महेन्द्र भटनागर }}फोट...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

फोटो में मुझे

अपनी शक़्ल नहीं भायी !

मैंने पुनः

बड़े उत्साह से

अपने चित्र खिँचवाये --

भिन्न-भिन्न पोज़ दिये,

फोटोग्राफ़र के संकेतों पर

गम्भीरता कम कर मुसकराया भी,

चेहरे पर भावावेश लाया भी,

पर पुनः मुझे उन फोटुओं में भी

अपनी शक़्ल नहीं भायी,

तनिक भी स्व-रुचि को

रास नहीं आयी !


पर, क्या वे शक्लें

मेरी नहीं ?

क्या वे बहुरंगी पोज़

मेरे नहीं ?


वस्तुतः

हम फोटो में यथार्थ आकृति नहीं,

अपने सौन्दर्य-बोध के अनुरूप

अपने को चित्रित देखना चाहते हैं,

अपने ऐबों को

गोपित या सीमित देखना चाहते हैं !


 